रेणु की वैचारिक चेतना – शिवदयाल

इतना स्पंदित जीवन! इसी की गूँज, इसी की थरथराहट उनकी रचनाओं में लरज रही है। उनकी रचनाआ में जो लालित्य है – स्थानिकता का, ’लोकल’ का, वह उनके जीवन का ही है, स्वयं उनका जिया हुआ! 

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कुछ मौते हैं बनी ठनी : मणि राव की कविताएँ

कुछ मौते हैं बनी ठनी 
नफ़ासत से तह की हुई तितलियाँ

और कुछ के होते हैं परचम 
तार तार  हुआ एक  पर, थपेड़े   खाता हवा में

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मैला आँचल : लिंग-भेदी नैतिकता की सर्जनात्मक आलोचना – विनोद तिवारी

28 नवंबर 2013 को मनीष शांडिल्य की एक स्टोरी के साथ बीबीसी हिंदी डॉट कॉम एक
खबर प्रकाशित होती है –  रेणु के ‘मैला
आँचल’ की कमली नहीं रहीं ।

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