
ऋत्विक भारतीय की सात कविताएं (‘फ़र्क नहीं पड़ता’ सीरीज)
‘फ़र्क नहीं पड़ता’ स्त्रीवादी युवा कवि
ऋत्विक भारतीय की उन कविताओं की सरिणी है जहां हर वर्ग, हर वर्ण, हर सम्प्रदाय की नई स्त्री
ने गहरे संताप की गुमसुम चुप्पी तोड़ दी है
Gender Perspective on Home and the World
‘फ़र्क नहीं पड़ता’ स्त्रीवादी युवा कवि
ऋत्विक भारतीय की उन कविताओं की सरिणी है जहां हर वर्ग, हर वर्ण, हर सम्प्रदाय की नई स्त्री
ने गहरे संताप की गुमसुम चुप्पी तोड़ दी है
कुछ मौते हैं बनी ठनी
नफ़ासत से तह की हुई तितलियाँ
और कुछ के होते हैं परचम
तार तार हुआ एक पर, थपेड़े खाता हवा में
(चित्र- सुप्रिया अम्बर) विशाखा मुलमुले की कविताएँ ‘वरण-भात’ सी हैं, जीवन की साधारण लेकिन बेहद ज़रूरी चीज़ों की ओर आहिस्ते से संकेत करती हुईं, हमारे आसपास घटित हो …
यम से छीन लाएगी माँ मेरी आत्मा- विशाखा मुलमुले की कविताएँ Read Moreजोशना बैनर्जी की कविताएँ बांग्ला परिवेश, भाषा और जीवन शैली की कम जानी- समझी गयी दुनिया से हिन्दी जगत का परिचय कराती हैं
एक बंगालन के गोदने में कैद है महाब्रह्माण्ड : जोशना बैनर्जी आडवाणी की कविताएँ Read Moreवरिष्ठ कवि, लेखिका सुमन केशरी की कविताएँ मिथक, इतिहास द्वारा उपेक्षित छूट गयी स्त्री-अस्मिता और उसके अनुत्तरित प्रश्नों का आधुनिक परिप्रेक्ष्य में पुनर्पाठ करती हैं
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