गूँथा हुआ जीवन : लक्ष्मी कनन की कविताएँ/अनुवाद – अनामिका

  गूँथा हुआ जीवन पके हुए वे छेहर बाल बिखरे थे इधर उधर गुलियाए चेहरे पर हँसकर कहा उसने, “ अब मेरे हाथ में समय है बालों का जंजाल कम …

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