भूरी झाड़ियां/ पच्चीस छोटी कविताएं – रंजना अरगडे

  सूखी झाड़ियों पर फुर्ररऱ से उड़तीं भूरी चिड़ियाँ गोया सूखी झाड़ियाँ ही हों भूरी चिड़ियाँ  2 क्या रस पाती होंगी भूरी झाड़ियों पर नीली चमकती फूलचुहिया? या ढूँढतीं हैं …

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नियति, प्रारब्ध और चित्र-कथाएं – पूनम अरोड़ा

               स्त्री पक्ष के जिन आयामों को जिस ध्यानानिष्ठ और पारखी दृष्टि से चित्रकार गोगी सरोज पाल ने कैनवस पर उतारा है उससे ऐसी …

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सेरेना को लेकर गढ़ा जाता नस्लवादी विमर्श – यादवेन्द्र पाण्डेय/ पुस्तक अंश

    अनेक चर्चित कविता संकलनों के रचयिता अमेरिकी कवि टोनी हॉगलैंड ने “द चेंज” शीर्षक से एक कविता लिख कर एक टेनिस मुकाबले का हवाला देते हुए बगैर सेरेना विलियम्स का नाम …

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गहन है ये अंध-कारा – निशा नाग की समीक्षा उपन्यास कालचिती पर/लेखक शेखर मल्लिक

निराला की ये पंक्तियों उपन्यास ‘कालचिती’ की इस इबारत” अब पहले जैसा कुछ नहीं रहा…हम लोगों का सब खत्म हो रहा है जैसा” का ही पर्याय है जिसे नक्सल प्रभावी …

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कविता का अनुवाद : सांस्कृतिक साझेदारी का सार्थक सोपान – रेखा सेठी

 कविता को अपने जीवन में बहुत करीब महसूस करते हुए भी मैंने कभी कवितायें नहीं लिखीं। संभवतः ये अनुवाद उस खाली कोने को भरने की कोशिश भर हैं। अपने इस …

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उषा गांगुली और उनका रंगकर्म – रमा यादव

  रंगकर्म की दुनिया का  एक बड़ा नाम या यूँ कहूँ की  विराट नाम उषा गांगुली जी का २३ अप्रैल २०२० को देहांत हो गया l रंगकर्म उनके जीवन का …

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रंगों में खुलती एक आह : आर्टेमिज़िया – मनीषा कुलश्रेष्ठ

  2011की मई में अपनी इटली यात्रा के दौरान मुझे वेनिस, फ्लोरेंस और मिलान जैसे कला के केंद्र शहरों में नितांत अकेले भटकना एक वरदान ही था. उसी भटकाव में …

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‘हम नहीं रोनी सूरत वाले’ : सावित्रीबाई फुले की कविताई – बजरंग बिहारी तिवारी

  जीवन की गहरी समझ के साथ काव्य-रचना में प्रवृत्त होने वाली सावित्रीबाई फुले (1831-1897) अपने दो काव्य-संग्रहों के बल पर सृजन के इतिहास में अमर हैं| उनका पहला संग्रह …

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मैला आँचल : लिंग-भेदी नैतिकता की सर्जनात्मक आलोचना – विनोद तिवारी

28 नवंबर 2013 को मनीष शांडिल्य की एक स्टोरी के साथ बीबीसी हिंदी डॉट कॉम एक
खबर प्रकाशित होती है –  रेणु के ‘मैला
आँचल’ की कमली नहीं रहीं ।

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