भूरी झाड़ियां/ पच्चीस छोटी कविताएं – रंजना अरगडे

 


सूखी झाड़ियों पर

फुर्ररऱ से उड़तीं भूरी
चिड़ियाँ

गोया सूखी झाड़ियाँ ही हों

भूरी चिड़ियाँ

 2

क्या रस पाती होंगी

भूरी झाड़ियों पर

नीली चमकती फूलचुहिया?

या ढूँढतीं हैं फूल?

 3

भूरी झाड़ियों के आरपार

पके खेत दानों भरे

क्या कुछ सोचती होंगी

भूरी झाड़ियाँ?

 4

भूरी झाड़ियों से सटी

हरी झाड़ियाँ

बीच में है

अदृश्य आईना

 5

बुढ़ाती देह में

हरियाया जवान दिल

भूरी झाड़ियों के बीच

उग आई एक हरी झाड़ी

 6

कई रंग पहनती हैं

हरा पीला लाल गुलाबी

आखिर में होती हैं भूरी

झाड़ियाँ

 7

उठा बवंडर का गुबार

फँसी हवा

भूरी झाड़ियों में

बवंडर उठा

 8

टेसू गिरा

भरे-पूरे खिले पेड़ से

लहूलुहान

भूरी झाड़ियाँ

 9

फँसी गेंद को

ललचाई आँखों से निहारता

व्याकुल हो निकालता बच्चा

सिहरती भूरी झाड़ियाँ

 10

अटका

यह किसका रूमाल?

सूखे आँसू बाँचती

भूरी झाड़ियाँ

 11

भूरी झाड़ियों के सपनों में

आसमानी आईना भी

आता है, तो

भूरे बादलों जैसा

 12

भूरी झाड़ियों में फँसी

चमकती है लाल पन्नी

झाँकता, डरता, भौंकता

परेशान है कुत्ता

 13

भूरी मिट्टी में

टिकी हैं भूरी झाड़ियाँ

जडें अभी भी

हरी होंगी

 14

पीठ पर तुमने

फेरा है अपना हाथ

मुलायम हो गईं

भूरी झाड़ियाँ

 15

अब काली पड़ गई है

कठोर खुरदुरी त्वचा

सूख गई होंगी

भूरी झाड़ियाँ

 16

चमकती भूरी झाड़ियों में

उतर आई है शाम

आर्द्र, नम, भीगी

चुपचाप

 17

पृथ्वी की तरह

पूरा आसमान उठाती हैं

भूरी झाड़ियाँ

कोई नहीं देखता

 18

रात के निविड़ में तो

कोई नहीं दिखता

न हरी, न भूरी झाड़ियाँ

केवल चाँद-तारे                      

 19

देह में पसर गईं

भूरी झाड़ियाँ नसों की
मानिंद

आत्मा की भूरी चिड़िया अब

न चहकती है, न ही पंख
फड़फड़ाती

 20

धीरे-धीरे भूरी हो गईं हैं

नाद भरी हरी झाड़ियां

चुप खुली आँखों का आसमान

भावहीन मौन संगीत में डूबा 

 21

भूरी झाड़ियों में

अब भी ज़िंदा है खुशबू

हरे वसंत की

जस की तस

 22

कितने ही मौसम बे-मौसम

झेले हैं भूरी झाड़ियों ने

अब उनसे न कहो

और भी खराब दिन आएंगे आगे

 23

धारदार पनीले अस्त्र से

गोद दी खेतों की देह

साल दर साल  चुप

बिसूरती भूरी झाड़ियां

 24

तेज़ हवाएं,  धूल, बवंडर, बारिश

उखड़े पेड़, उजड़े खेत

ज्यों की त्यों, निर्विकार,
मौन

खड़ी हैं भूरी झाड़ियाँ 

 25

दिखाई पड़ने लगीं  हैं

सृष्टि की प्राचीनतम भूरी
झाड़ियां

कितना साफ़, शुद्ध और
पारदर्शी  हो गया है

पृथ्वी का देशकाल, लूसी।

                  

 

 

19 मार्च 2020 से 28 मार्च
2020 तक जारी

 

 

 

 

 

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