झूठ को सच बनाने की साजिश और चित्रकला -अशोक भौमिक (स्तंभ- 1)

चित्रकला इतिहास में कई चित्र अपने कलात्मक गुणों के कारण ही नहीं, बल्कि अपनी ऐतिहासिकता के लिए भी महत्त्वपूर्ण माने जा सकते हैं। ऐसा ही एक चित्र है- पूरब अपनी सम्पदा बर्तानिया को अर्पित कर रहा हैजिसे ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1778 में अपने लन्दन स्थित, ईस्ट इंडिया हाउस के राजस्व समिति कक्ष के लिए बनवाया था। किसी भी देश और काल के शासकों द्वारा बनवाए गए चित्र, स्वाभाविक रूप से ही उनके शौर्य और महानता का वर्णन करते हैं। अनेक अवसरों पर शासकों द्वारा एक झूठ को सच के रूप में स्थापित करने के उद्देश्य से और अपने मन मुताबिक इतिहास को तोड़ने मरोड़ने के लिए भी चित्रों का इस्तेमाल किया जाता रहा है। यह चित्र भी ब्रिटिश साम्राज्यवाद के स्वार्थों को ध्यान में रखकर बनवाया गया था। इस चित्र के निर्माण का समय (1778) महत्त्वपूर्ण है क्योंकि ब्रिटिश शासन की गिरफ्त से अमेरिका (1776) आज़ाद हो चुका था और ऐसे वक़्त अपने साम्राज्यवादी स्वार्थों के लिए भारत, ब्रिटिश शासकों के लिए ज्यादा महत्त्वपूर्ण हो चला था। अंग्रेज़ भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के माध्यम से जिस व्यापक अन्याय, अत्याचार और लूट को अंजाम दे रहे थे, उसे एक बेहतर चेहरा देने के उद्देश्य से ही यह चित्र न केवल बनवाया गया बल्कि ईस्ट इंडिया कंपनी की राजस्व समिति के कक्ष की दीवार पर इसे प्रदर्शित भी किया गया। इस चित्र में सीमित रंगों का प्रयोग है। जहाँ पृष्ठभूमि में आकाश, समुद्र और युद्ध पोत दिख रहे हैं। चित्र में  बाईं ओर जहाँ सफ़ेद कपड़ों में स्त्री, ब्रिटिश शासन की प्रतीक है वहीं काली स्त्री भारत का प्रतीक है। दर्शकों के लिए यह इस सच को स्थापित करने की कोशिश है कि, ‘भारत, अपने हीरे जवाहरात, सम्पदा आदि स्वेच्छा से बर्तानिया को सौंप रहा है। चित्र का शीर्षक भी उसी के अनुरूप, इतिहास के सच को झुठलाने की कोशिश में रखा गया है। यहाँ रोमन देवता बुध ग्रह (mercury) को हाथों में दंड लिए दिखाया गया है।  वास्तव में रोमन में बुध या मर्करी को वाणिज्य के देवता के रूप में माना जाता है। इस चित्र में बुध की उपस्थिति इस बात को रेखांकित करने के लिए दर्शाई गई है कि भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यापारिक कार्यकलापों के लिए ब्रिटिश शासन को दैवी स्वीकृति प्राप्त है। चित्र में मौजूद ये सभी बातें न केवल मनगढ़ंत हैं, बल्कि यह इतिहास को अपने ढंग से पेश करने की कोशिश भी है। चित्र में चीनी व्यक्ति को उपहार के रूप में मिंग फूलदान लिये दिखाया गया है, जबकि 1778 में चीन में ब्रिटिश साम्राज्यवाद का विस्तार नहीं हुआ था (हालाँकि वे इसके लिए पूरी कोशिश में लगे हुए थे)। इस प्रकार यह चित्र, केवल भारत के सन्दर्भ में ही नहीं, बल्कि साम्राज्यवादी शक्तियाँ अपने स्वार्थ में पूरी दुनिया में चित्रकला का किस तरह से उपयोग कर सकती हैं; उसका एक सार्थक उदाहरण है। युगों से, केवल राजाओं महाराजाओं ने ही नहीं बल्कि धार्मिक संस्थानों ने भी झूठ को सच के रूप में स्थापित करने के उद्देश्य से चित्रकला का सबसे प्रभावी ढंग से उपयोग किया है। स्पिरिडीओन रोमा (1737-1781) एक इतालवी चित्रकार थे, जिनके जीवन एवं कृतियों के बारे में ज्यादा जानकारियाँ उपलब्ध नहीं हैं। उन्होंने मूलतः लन्दन में रहकर ही चित्र बनाए थे और उपरोक्त चित्र पूरब अपनी सम्पदा बर्तानिया को अर्पित कर रहा हैउनकी सबसे चर्चित कृति है।